चुप रहता हूँ मगर नादान नहीं हूँ
किसी बात से मैं अनजान नहीं हूँ।
शहर में आ जाता हूँ कभी कभी
हर वक़्त का मैं मेहमान नहीं हूँ ।
इलज़ाम मुझ पर कोई लगाएगा क्या
मैं किसी का करता नुकसान नहीं हूँ।
भरोसा है बहुत खुदा पर मुझको
उसकी रहमतों से मैं वीरान नहीं हूँ ।
अपनी कलम से लिखता हूँ ग़ज़ल अपनी
करता किसी पर कोई अहसान नहीं हूँ।
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