Tuesday, July 6, 2010

कभी दिन बरस सा लगता है .

कभी दिन बरस सा लगता है
वक़्त कभी एकदम गुजरता है।
सोचता रह जाता है आदमी
मुंह से कुछ निकल पड़ता है।
घायल कर देता है जिस्म को
तीर जब कमान से निकलता है।
मेह्नत सब ही किया करते हैं
चोटी पर एक ही पहुँचता है।
हार का गम बर्दाश्त नहीं होता
आदमी जीते जी मरता लगता है।

1 comment:

  1. हार का गम बर्दाश्त नहीं होता
    आदमी जीते जी मरता लगता है।

    achha laga muvarakvad

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