एक माँ को अपने बेटे
बहुत अच्छे लगते हैं,
चाहे कितने ही नाकारा हों
आवारा हों ,निकम्में हों
बहुत अच्छे लगते हैं।
एक सास को दूसरों की बहुएँ
बहुत अच्छी लगती हैं,
चाहे जाहिल हों ,फूहड़ हों ।
काम करने का सलीका भी
उन्हें न आता हो पर
बहुत अच्छी लगती हैं।
अपनी बहु चाहे
कितनी सुंदर , सुघढ़
सलीकेदार हो ,
म्र्दुव्यव्हार हो ,
उतनी अच्छी नहीं लगती जितनी
दूसरों की बहुएं अच्छी लगती हैं।
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नो कमेंट...घर में दो दो बहुएँ हैं और पत्नी, जो उनकी सास है, वो भी. सभी ब्लॉग देखते हैं गाहे बगाहे...अतएव मैं मौन साधक!!! कुछ न कह पाऊँगा. :)
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