जो संग तराशा खुदा हो गया
दर्द खुद ही मेरी दवा हो गया ।
उदासी जाने कहाँ से घिर आती है
यह सोचते एक अरसा हो गया.
बज्म में तो खुशियाँ बरसी थी
वक़्त जल्दी ही विदा हो गया।
सुख के पल थोड़े से ही थे वह
जख्म फिर से हरा हो गया।
क्यों हमें डराती रहती हैं खुशियाँ
हर बार यह प्रश्न नया हो गया।
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