हर बात की तलब हम अब छोड़ चुके हैं
अकड़ कर रहने का फ़न अब छोड़ चुके हैं।
शरीक अपने गम में हम अब किसे करें
तन्हा रहने का चलन हम छोड़ चुके हैं।
जो दरिया था वही समंदर बन गया
अश्क बहने का हुनर अब छोड़ चुके हैं।
मुहब्बत में रतजगा ही जरूरी काम था
गम के दहाने पर उसे अब छोड़ चुके हैं।
कुछ वक़्त लगता है भूलने में किसी को
रफ्ता रफ्ता शहर हम अब छोड़ चुके हैं।
मुहब्बत पुकारती है तन्हाई में अब भी
बस रुक कर सुनने का फ़न छोड़ चुके हैं।
परवाह दिल को उनकी आज भी उतनी है
वो नाम मेरा रेत पर लिख छोड़ चुके हैं।
वाह बहुत सुंदर...एक एक शब्द असरदार लिखा.
ReplyDeleteबधाई.