अलग आइनों में चेहरा अलग नज़र नहीं आता
सूनी आँखों में अह्सासे गम नज़र नहीं आता।
अतीत की तहें पलटने से वर्तमान बदलेगा कैसे
बीमारी में कभी चेहरे पर नूर नज़र नहीं आता ।
गुमनामी के अँधेरे में खो कर रह गया था कभी
अपने वजूद में सिमटा वह अब नज़र नहीं आता।
खुद्दारी उसका जेवर बन कर के रहा करती थी
बुढ़ापे में भी मोहताज वह नज़र नहीं आता ।
अपने दर्दे- गम से लिखता है ग़ज़ल के मिसरे
चेहरे पर फिर भी कोई दर्द नज़र नहीं आता।
अगर ऐसा होता कि आइना बदलने से चेहरे बदल जाते तो सचमुच बड़ा कन्फ्युसन हो जाता.
ReplyDeleteअच्छी रचना पर बधाई.