हमने शहर का हर चलन नया देखा
गमले में मन्दिर के पीपल खड़ा देखा।
निकल पड़ते हैं सुबह जल्दी ही सब
घर में सारा दिन ताला पड़ा देखा ।
अंगडाइयां लेकर मचलता समन्दर
अज़ब तरह के तमाशे करता देखा।
आसमान छूने को बेताब हुआ वह
सदा रेत की गोद में सिमटा देखा।
किसी को कोई पहचानेगा कैसे यहाँ
इन्सान खुद से ही बेखबर बना देखा।
ईमान की भी कीमत नही देखी कोई
दुकान की कीमत पर बिका देखा।
अपनी शक्ल में नही मिलता कोई भी
नकाब तरह तरह का चढ़ा देखा ।
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