कभी उलझी कभी सुलझी
इसी तरह से जिंदगी गुजरी।
आँगन में गम बरसा कभी
आंचल में ख़ुशी बिखरी ।
कभी पलकों से शाम
उदास रोती हुई बिछड़ी।
सुबह की लाली में कभी
उम्मीद मिलन की चमकी।
दोस्तों ने गम दिया कभी
दुश्मनी में खुशबु भी महकी।
आइना घमंड का चटखा
फिर कमी किसी की अखरी।
बस इतना जरूर पाया हमने
करके सेवा बड़ी उनकी
बजुर्गों कि दुआओं से ही
तो है यह जिंदगी महकी ।
nice
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