तुम्हारे घर का कहीं पता नहीं मिलता
जमीं पर रहकर आसमा नहीं मिलता।
किताबें रोज़ उठाकर खंगाल लेता हूँ
नसीब का कहीं लिखा नहीं मिलता ।
जरा सी धूप बदन को बुरी लगती है
बिन इसके फूल भी निखरा नहीं मिलता।
सूज़ जाती हैं आँखें रो रो कर बहुत
अश्क बहने को और रस्ता नहीं मिलता।
दूधिया रातों में बैचेन समंदर के कभी
मचले पहलू में चाँद उतरा नहीं मिलता।
लिख देता रोज़ नयी कहानी मुहब्बत पर
रेत पर कल का ही लिखा नहीं मिलता ।
हम भी खुश हो लेते ,न रोते नाम यदि
वसीयत में दूसरा लिखा नहीं मिलता ।
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