वो भी क्या दिन थे
जब गाँव में मेरी बैलगाड़ी सबसे अगाडी की धुन छेडती थी
तो गली मोहल्ले के लडके मीलो तक मेरा पीछा नहीं छोड़ते थे
मैं उत्साह से भरा रहता था।
यह भी क्या दिन हैं
शहर की बड़ी बड़ी सड़कों पर मेरी मोटरकार
धीरे धीरे रेंगती चलती है और कोई गाडी
मेरी गाडी से टकरा न जाए
दर पीछा नहीं छोड़ता।
sachchi kavita.good.
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