कभी गरीब
प्याज ,गुड ,मिर्च से
चने -बाजरे की रोटी
खाता था ।
प्याज तो, कब का गायब
हो गया था,
उसकी थाली से !
गुड भी अब गायब
हो गया है ,
उसकी थाली से !
बाकी रह गयी- मिर्च ,
क्या यह भी कभी
गायब हो जायेगी ,
उसकी थाली से ?
शायद- नहीं ,
मिर्च, कभी गायब नही होगी ,
उसकी थाली से ,
क्योंकि, मिर्च खाने से,
आँख में आंसू आते हैं
और आंसू ही तो
गरीब का मुकद्दर है ।
और आंसू ही तो
ReplyDeleteगरीब का मुकद्दर है ।
अच्छी कविता
बधाई
सही कहा आपने !
वरना हम हम राणा प्रताप के वंशज तो है ही !
आज की आवाज
कृपया वर्ड वैरिफिकेशन की कष्टकारी एवं उबाऊ प्रक्रिया हटा दें !
ReplyDeleteयूँ लगता है मानो शुभेच्छा का भी सार्टिफिकेट माँगा जा रहा हो । इसकी वजह से पाठक प्रतिक्रिया देने में कतराते हैं !
बहुत ही आसान तरीका :-
ब्लॉग के डेशबोर्ड पर जाएँ > सेटिंग पर क्लिक करें > कमेंट्स पर क्लिक करें > शो वर्ड वैरिफिकेशन फार कमेंट्स > यहाँ दो आप्शन होंगे 'यस' और 'नो' बस आप "नो" पर टिक कर दें > नीचे जाकर सेव सेटिंग्स कर दें !
guptaji,
ReplyDeletebadi gupt maar maarte hain aap.........
bahut achhi aur sacchi kavita k liye badhaiyan__
bahut achchhaa .sachchi aur saral .swagat hai is blog pe .
ReplyDeleteआप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
ReplyDeleteलिखते रहिये
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी
लाजवाब लगी आपकी रचना............मिर्च वाकई ख़तम नहीं होगी...........येही तो यंत्रणा है गरीबी की.............. भावनाओं से भरी रचना ...... स्वागत है आपका इस रचना के साथ
ReplyDeletejandar,shandar. narayan narayan
ReplyDeleteशरीफों की गरीबी में भी इज्जत कम नहीं होती, करो सोने के टुकडे सौ तो भी कीमत कम नहीं होती।
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