Wednesday, January 18, 2017

इस नजाकत से उसने नाम मेरा लिया
नूर मुहब्बत का  मुझ पर बरसा दिया
मैं झिझकता रहा उसने हाथ थाम मेरा
इश्क़ से मेरा भी तआर्रूफ करा दिया
मदमाती नज़रों से मुझे देखा इस कदर
नशे का मुझको भी तो आदी बना दिया
विसाले शब जुबां से कुछ भी नहींं कहा
सासों को खुशबू से अपनी महका दिया
मुहब्बत कहते हैंं रंगत ही बदल देती है
उम्र हो चली थी मुझको जवां बना दिया
कितना हसीं राग था वह सात सुरों का 
दिल को मुहब्बत का रस्ता दिखा दिया
विसाले शब -मिलन की रात
तआर्रूफ - परिचय
-------सत्येंद्र गुप्ता

Saturday, January 7, 2017

यादों का हमने शहर बसा रखा है
तनहाईयों में तहलका मचा रखा है
उनका दर्द सीने से लगा कर अपने
हमने उनसे तआल्लुक बना रखा है
तनहाईयां ही कहीं बगावत न कर दें
खुशबूओं को भी हमने बुला रखा है
यह इश्क़ कहीं बदनाम न हो जाए
दिल के दर्द को ही दवा बना रखा है
किसी ने जख्म दिया किसी ने फूल
सब को मैंने करीने से सजा रखा है
जिंदगी शर्तो पर भी नही जी जाती
चिराग तूफान में भी जला रखा है
मेरे दर्द को गजल मत समझ दोस्त
मैंने तो बस काफिया मिला रखा है
------सत्येंद्र गुप्ता
कुछ बातों पर बस चलता नहींं
वक्त का फैसला  बदलता नहींं
सब रहनुमा हैंं सब ताकतवर हैंं
कद किसी का कम लगता नहींं
रोज रोज मौजूअः बदलता है वो
दमखम उसमे कोई दिखता नहींं
मंजिल की खबर न रस्ते का पता
वक्त चला जा रहा है रूकता नहींं
झूठ सच मे फर्क इतना ही तो है
हकीकत का अंदाज लगता नहींं
हुस्न का भी तो अलग ही दस्तूर है
किसी को वह कुछ समझता नहीं
हुस्न की बाहों मे दम तोड़ देता है
इश्क़ किसी दर पर झुकता नहींं
जिंदगी तू भी जाने कैसी शराब है
तेरा ही  नशा कभी उतरता नही