Friday, November 27, 2015

इबादतों का  नया सिलसिला हो गया 
संग जो भी तराशा वही  ख़ुदा हो गया। 

यक़ीनन तेरा अक़्स भी दिल में मेरे था 
इस बहाने उसका भी  सज़दा हो गया।

जब भी याद तुमने मुझे दिल से किया 
दिल का मौसम भी खुशनुमा हो गया। 

 निशानी तेरी संभाल कर रखी है मैंने 
लगाव उस से बहुत ही  गहरा हो गया। 

आदत  तुम को मेरी  जो ना पसन्द थी
दायरा अब उस का भी कम सा हो गया। 

इतना भी न था मेरी तन्हाई का फैलाव 
सारे जहाँ में ही जिसका चरचा  हो गया। 

पहले हंसी आती थी अपने हर  हाल पर 
अब ज़िंदगी का मुझको तजुरबा हो गया। 

मुझे भी अब एक नए गम की ज़रूरत है 
दर्द ही अब जीने का सिलसिला हो गया। 

ज़िंदगी अब तो इज़ाजत दे दे तू भी मुझे 
देख ले मैं कैसा था अब मैं क्या हो गया। 





Tuesday, November 24, 2015

आईने ने  मेरे बहुत खूबसूरत होने की गवाही दी थी 
कोई मुझको देखा करे मैंने किसी को हक़ ये न दिया। 
तर्क़े तअल्लुक़ भी यह दिल किसी से कर न सका था 
मेरे ग़ुरूर ने ही मुझको किसी आँख में रहने न दिया। 

रह रह कर के वो कई सिलसिले याद आ रहे हैं आज 
काश भूले से ही हम किसी महफ़िल में रह लिए होते।
आज़ वक़्त ही वक़्त है हम से काटे से भी नहीं कटता
कभी फुर्सत के लम्हों में उनको अपना कह लिए होते।   

Thursday, November 19, 2015

बचपन गया ज़वानी गई उम्र भी जाने को है 
ज़िंदगी अब भी  मेरी मुझको आज़माने को है। 

कांपते हैं पाँव और आँखे भी तो हैं सहमी हुई 
दिल को लगता है करिश्मा कोई हो जाने को है। 

मैं क्या और तू क्या सब वही तो हैं  कर रहे 
उसी सफ़र पर चल रहे क़यामत जहां आने को है। 

सिमट गई वक़्त की चादर में ही सारी ज़िंदगी 
ख्वाहिश आखिरी वक़्त में  भी सर उठाने को है। 

न आसमाँ किसी का है न ज़मीं किसी की हुई 
जो कमाया छोड़ वो भी खाली हाथ जाने  को है। 

क्यों मुझको बदनाम करता है ज़माना पूछिए 
क्यों हर कोई यहाँ मेरी ही दास्ताँ सुनाने को है। 

बड़े अदब के साथ उस को रहनुमा मैंने कहा
आज शख्स वही मुझको आइना दिखाने को है। 

सुन रहा हूँ अँधेरे में ये आहटें कैसी मैं आज  
कोई आया है आज या आज कोई जाने को है। 

जो मयक़दा परस्त हैं वो आएंगे इसी तरफ 
एक यही रास्ता है जो जाता मयख़ाने  को है। 

Monday, November 16, 2015

मुहब्बत में ज़हर ज़हर नहीं होता 
जो पी भी लें तो असर नहीं होता। 

जाने क्या तासीर है  मुहब्बत में 
इलज़ाम किसी के सर नहीं होता। 

इश्क़  ही तो ऐसी एक शै  है यारों 
नशा जिसका  क़मतर  नहीं होता।

महकती न आबो हवा ज़िंदगी की
इश्क़ का अगर  शज़र नहीं  होता। 

इश्क़ न होता इस ज़िंदगी से अगर 
मुझ में भी कोई  हुनर  नहीं होता। 

मीरा  नहीं पीती  ज़हर का प्याला  
 कृष्ण  से इश्क़  अगर नहीं होता। 

    शज़र --पेड़ 

Saturday, November 14, 2015

इश्क़ का रुतबा कम नहीं होता 
इश्क़ मज़बूर  बेदम नहीं होता। 

इश्क़ में अगर तपिश नहीं होती 
दिल का कोना  नम नहीं होता। 

हुस्न का सदक़ा भी कौन करता 
इश्क़ में ही अगर दम नहीं होता। 

दिलों में जुनूने इश्क़ नहीं  होता 
दीवानगी का आलम  नहीं होता। 

इश्क़ को अता है  ख़ुश्बू ही ऐसी 
रुसवाइयों का भी ग़म नहीं होता। 

क़यामत का इसमें नशा होता है 
रिश्तों में दैरो -हरम  नहीं होता।

आग का दरिया कहते हैं इसको 
इश्क़ न होता तो ग़म नहीं होता।  

  दैरो -हरम --मंदिर मस्ज़िद 

Saturday, November 7, 2015

ग़लती उनकी थी गुनहगार हम हुए 
उनके क़रीब रहके शर्मसार हम हुए। 

बस्ती में चारों तरफ़ चरचा यही था 
मशविरा उनका था शिकार हम हुए। 

साया भी मेरी सादगी से शर्मसार था  
आईने के सामने भी लाचार हम हुए।

सूरज ले गया उजाले सब समेट कर  
और सियाह रात के क़र्ज़दार हम हुए। 

भरोसा बहुत था अपने नाखुदा पे हमें 
किश्ती  में बैठते  ही बेक़रार हम हुए। 

ज़ख़्म उनके तो सूख  गए हवाओं में 
पर ग़म  में उन के आबशार हम हुए। 

बारिश में भीगने से डरते रहे हम सदा 
आंसुओं से भीग कर तार तार हम हुए। 

   आबशार - पानी पानी 

Sunday, November 1, 2015

ज़िंदगी तेरे लिए भी अज़नबी सी थी 
ज़िंदगी मेरे लिए भी  इक पहेली थी। 

मोहरे प्यादे वज़ीर की चालें तय थी 
बिसात इनकी पहले से ही बिछी थी। 

मेरे सीने से लगके सोया था मेरा दर्द 
महक़ इस में तेरी सांसो की बसी थी। 

उसीकी ज़ुस्तज़ु हमें उदास करती है  
जिसकी आरज़ू इस दिल में रहती थी। 

जिससे मिलने गए हम सादा दिल लिए 
उसने ही मेरे ज़ख्मों की तिज़ारत की थी। 

मिला वो आज तो हंसकर के यह बोला 
मैंने तो बस ज़रा सी चुटकी ही ली थी। 

चेहरा ही तो पहचान है आदमी की भी  
उसने बदलने की इसे  कोशिश की थी। 

कल बेहतर थे आज लाखों में शुमार हैं 
इस के लिए हमने बड़ी  मेहनत की थी।