Sunday, February 27, 2011

घर के आँगन में आएँगी तितलियाँ बुलाकर तो देखिये
मेरी गोल्ड कलेन्द्दुला गुलाऊद खिलाकर तो देखिये।
तितलियों के संग मन भी उड़ान भरने को मचलेगा
उलझे उलझे ख्यालातों से बाहर आकर तो देखिये।
दुश्मनी आपसी खुद-ब-खुद ही मिटती जायेगी
जख्मों को नर्म लम्स से सहलाकर तो देखिये।
दुआओं का ढेर सामने लगता ही चला जायेगा
एक परिंदे को पिंजरे से उडाकर तो देखिये।
गम की काली घटाएं न रुलायेंगी तुझे कभी
दिलों में वासंती बयार बहाकर तो देखिये।
खुदा की बनाई हर एक चीज़ अनूठी होती है
रेगिस्तान में दिल बहलेगा आकर तो देखिये।

Friday, February 25, 2011

जमीं पे रह के जमीं से बेगाने हो गये
बंजारों की तरह उनके फसाने हो गये।
घर बुनियादी तौर पर बना नहीं कहीं
कभी यहाँ कभी वहां ठिकाने हो गये।
जब चाहा सड़क पर वो निकल पड़े
सड़क से उनके रिश्ते पुराने हो गये।
बहुत तेज़ चलते थे जब चलते थे वो
खत्म आँधियों के भी फसाने हो गये।
किसी महफ़िल में रहना न हुआ कभी
अदब के फन सारे अनजाने हो गये।

Tuesday, February 22, 2011

किश्ती में बैठ जाता पार उतर जाता
वक़्त मेरा भी आसानी से गुज़र जाता।
तहरीरों के नश्तर अगर न चुभे होते
शहर में तेरे अपना मैं नाम कर जाता।
बर्फीली वादी धुंध ये पहाडी तन्हाई
सहारा इनका न होता किधर जाता।
गुमनाम अंधरे में खौफ आंधी का
मैं गुनगुनाता न होता तो डर जाता।
ये दर्द उस पर आंसुओं का सैलाब
रुकता न गर दामने-रूह भर जाता।
थकान ये खराशें यह नींद का बोझ
सफ़र में न होता तो अपने घर जाता।
तस्सली हौसला यदि खुद को न देता
क़सम खुदा की मैं जल्दी मर
जाता

तेरी रेशमी साड़ी का पल्लू जब कंधे से ढलका जाता है
उमंग जवान हो उठती है मन हुलस हुलस हुलसाता है।
बिंदास हंसी के घुंघरू बाँध तुम छम छम करती आती हो
जलतरंग की सुरीली धुन सुन के मन चंचल हो जाता है।
भीगे बालों की सोंधी सुंगध साँसों को महका जाती है
वासन्ती तन का स्वर्णिम रोयाँ अंतस सिहरा जाता है।
मैं इन्द्रधनुष बन जाता हूँ तुम सारा आकाश होती हो
वर्षा रिम झिम तुम होती हो मन झील बन इतराता है।
पुष्पित सुरभित अमराई पर कोकिला तान सुनती है
रस अलंकार छंदों में बंध मन प्रणय गीत सुनाता है।
तुम्हारे अनुपम स्पर्शों से ह्रदय चन्दनवन हो जाता है
अमृत सा मधुर मिलन तन मन पुलकित कर जाता है।

Monday, February 14, 2011

तन मन में बिखरी खुशबू गुलालों की है
धूम मचाती आयी दीवानों की टोली है।
मच रहा है हुरंग चारों तरफ रंगो का
मस्ती छाई हुई हर दिल में होली की है।
गोरी का भीगा घाघरा व तंग चोली है
आंटी भी आज सोलह बरस की होली है।
फागुनी बयार में छाये गुलाबी बादल हैं
उसने भंग में मुंह की लाली ही धो ली है।
कन्हैया भी राधा को कर रहा ई-मेल है
रुक्मणी भी आज इन्टरनेट की हो ली है।
रंगों के छींटे टी वी स्क्रीन पर बिखरे हैं
होली भी अब तो बहुत हाई टेक हो ली है।
चारों और मचा हुआ बस एक ही शोर है
बुरा मानो तो मानो भई आज तो होली है।
वसंत वेलेंटाईन डे के बाद फागुन आना दस्तूर है
आई लव यू आई लव यू का बिखरा हुआ नूर है।
रंग बिरंगे पुते मुंह में गुलाल सनी उँगलियों से
रंगीन दही बड़े गूंझिया मीठी खाना भी दस्तूर है।
होली में हंगामा करना भंग पीकर के मचलना
इसको छेड़ा उसको पकड़ा तंग करना भी जरूर है।
मस्ती गली गली में पसरी खुमारी चहूँ ओर है।
पिया के संग करती गोरी मस्त मलंग भरपूर है।
बाबा उसके देवर बन गये छाया उस पे सरूर है
सास को भी मैंने देवरानी आज कहना जरूर है।
हंसते गाते धूम मचाते ढोल ओर नगाड़े बजाते
बुरा न मनो होली है सबका कहना ये दस्तूर है।
कोई हमें दीवाना कहे या कहे फिर मस्ताना
होली के रंग में डूबे हुए हमको सब मंजूर है।

Friday, February 4, 2011

हम मांगते मांगते फ़कीर बन गये
तुम कुछ न बने एक तस्वीर बन गये।
दोस्ती फ़िज़ूल है मेरे ख्याल में अब
तुम किसी हाथ की लकीर बन गये।
मेरी तलब का ही शख्स न मिला
तेरे जनून की सब तहरीर बन गये।
शुहरत के भी तुम सिलसिले हुए
बेकसी की हम ही पीर बन गये।
रस्मो रिवाज़ ही तेरे ऐसे थे कुछ
जो मेरे पाँव की ज़ंजीर बन गये।
तेरे पह्लू में गुजरी हुई रातों का क्या होगा
तुझ से न हो सकी उन बातों का क्या होगा।
यह शानो शौकत भी बेकार जा रही है सारी
तमाशबीन ही नहीं है तमाशों का क्या होगा।
खून के सारे रिश्ते भी अब पैसों में बिक गये
किरचें भरी हैं जिस्म में लाशों का क्या होगा।
सफ़र में सफ़ीना अगर मोड़ता रहा यूं ही
समंदर पार करने के इरादों का क्या होगा।
एक ही मंडी बची है शहर में बिकने को
अगर न बिक सका वायदों का क्या होगा।

Thursday, February 3, 2011

अभी धूप अभी छाँह हो गये
मौसम भी लापरवाह हो गये।
उजाला आएगा कहाँ से अब
दिल सब के सियाह हो गये।
फलक में उड़ते फिरते थे वो
गिर कर गर्दे -राह हो गये।
फूलों पर निखार आते ही
कांटे सब खैर ख्वाह हो गये।
लगा लगा कर दरबार रोज़
वो जहां - पनाह हो गये।
फलते फूलते रहे खुद तो
शख्स कुछ तबाह हो गये।


सता रहे हो तुम क्यों सवेरे से मुझको
याद आ रहे हो क्यों सवेरे से मुझको।
घने जंगल में रहने का रबत है मुझे
डर लगता नहीं अब अँधेरे से मुझको।
मुहब्बत निभाता हूँ हर दिल से मै
फर्क नहीं पड़ता किसी चेहरे से मुझको।
माँ की दुआ का नूर बरसता है हर घडी
दूर रखता है हर गम के घेरे से मुझको।
कैसे उन आँखों को ठंडक पहुंचाऊं मैं।
वो झाँक रहे हैं बीच सेहरे से मुझको।
वो हसीन पल गुदगुदाता है मुझे
मेरे बचपन से मिलाता है मुझे।
पहली दफ़ा खुद को देखा था
वह आइना याद आता है मुझे।
कैसे उठते थे क़दम गिरते पड़ते
ठुमक के चलना तरसाता है मुझे।
मुझमे एक अदा थी तिश्नगी की
पल वह बैचैन कर जाता है मुझे।
मीठी मीठी बातें मइया बाबा की
शहद का कूज़ा याद आता है मुझे।